अक्सर आकाश गंगा की
सुनसान किरणों पर खड़े होकर
जब मैंने अथाह शून्य में
अनंत प्रदीप्त सूर्यों को
कोहरे की गुफाओं में
पंख टूटे जुगनुओ की तरह
रेंगते देखा है
तो मैं भयभीत होकर
लौट आई हूँ |
-धर्मवीर भारती
3/3/09
A gem from a Hindi poem
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