वो माया से विरक्त था, वो रुका हुआ वक़्त था
वो पल जो कोई पल न था, जहाँ का कोई कल न था
वहां कोई दिशा न थी, उषा न थी निशा न थी
न मुझे कोई प्यास थी, न किसी की तलाश थी
वो भूत था भविष्य था, वो एकता का शिष्य था
..
..
वो निर्जीव न था, उसके हर अंश में प्रान था
वो यथार्थ न था, वो एक स्वप्न का वितान था
वहां गुरुत्व न था, किसी कोटि का अनुमान न था
कोई अभाव न था, किसी अभिलाषा का प्रमान न था
वो समय न था, वो हर बिंदु पर समान था
न भूत न भविष्य, बस दीर्घ वर्तमान था
वो मौलिक थे, मेरी कल्पना के पात्र नहीं थे
हम उसके अवियोज्य अंश थे, अतिथि मात्र नहीं थे
न कोई ध्येय था न कोई राह थी
मैं था तुम थे फिर क्या परवाह थी
मैं मैं न था तुम तुम न थे
वो हम न थे वो कोई और थे
हम हम न थे हम कोई और थे
वो हम न थे वो कोई और थे
वो पल जो कोई पल न था, जहाँ का कोई कल न था
वहां कोई दिशा न थी, उषा न थी निशा न थी
न मुझे कोई प्यास थी, न किसी की तलाश थी
वो भूत था भविष्य था, वो एकता का शिष्य था
..
..
वो निर्जीव न था, उसके हर अंश में प्रान था
वो यथार्थ न था, वो एक स्वप्न का वितान था
वहां गुरुत्व न था, किसी कोटि का अनुमान न था
कोई अभाव न था, किसी अभिलाषा का प्रमान न था
वो समय न था, वो हर बिंदु पर समान था
न भूत न भविष्य, बस दीर्घ वर्तमान था
वो मौलिक थे, मेरी कल्पना के पात्र नहीं थे
हम उसके अवियोज्य अंश थे, अतिथि मात्र नहीं थे
न कोई ध्येय था न कोई राह थी
मैं था तुम थे फिर क्या परवाह थी
मैं मैं न था तुम तुम न थे
वो हम न थे वो कोई और थे
हम हम न थे हम कोई और थे
वो हम न थे वो कोई और थे